Friday, 16 March 2012

परमार वंश


परमार वंश


परमार वंश मध्यकालीन भारत एक का राजवंश था। परमार गोत्र गुर्जर तथा राजपूतों में आता है। विद्वानो का कहना है कि परमार मुल से गुर्जर थे तथा १० वी शदी तक गुर्जर प्रतिहारो के अधीन थे। इस राजवंश का अधिकार धार और उज्जयिनी राज्यों तक था। ये ९वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी तक शासन करते रहे।


परमार एक राजवंश का नाम है, जो मध्ययुग के प्रारंभिक काल में महत्वपूर्ण हुआ। चारण कथाओं में इसका उल्लेख राजपूत जाति के एक गोत्र और अग्निकुल के सदस्य के रूप में मिलता है। परमार सिंधुराज के दरबारी कवि पद्मगुप्त परिमल ने अपनी पुस्तक 'नवसाहसांकचरित' में एक कथा का वर्णन किया है। ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र के विरुद्ध युद्ध में सहायता प्राप्त करने के लिये भाबू पर्वत के अग्निकुंड से एक वीर पुरुष का निर्माण किया। इस वीर पुरुष का नाम परमार रखा गया, जो इस वंश का संस्थापक हुआ और उसी के नाम पर वंश का नाम पड़ा। परमार के अभिलेखों में बाद को भी इस कहानी का पुनरुल्लेख हुआ है। इससे कुछ लोग यों समझने लगे कि परमारों का मूल निवासस्थान आबू पर्वत पर था, जहाँ से वे पड़ोस के देशों में जा जाकर बस गए। किंतु इस वंश के एक प्राचीन अभिलेख से यह पता चलता है कि परमार दक्षिण के राष्ट्रकूटों के उत्तराधिकारी थे।

परमार परिवार की मुख्य शाखा नवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल से मालव में धारा को राजधानी बनाकर राज्य करती थी और इसका प्राचीनतम ज्ञात सदस्य उपेंद्र कृष्णराज था। इस वंश के प्रारंभिक शासक दक्षिण के राष्ट्रकूटों के सामंत थे। राष्ट्रकूटों के पतन के बाद सिंपाक द्वितीय के नेतृत्व में यह परिवार स्वतंत्र हो गया। सिपाक द्वितीय का पुत्र वाक्पति मुंज, जो 10वीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थांश में हुआ, अपने परिवार की महानता का संस्थापक था। उसने केवल अपनी स्थिति ही सुदृढ़ नहीं की वरन्‌ दक्षिण राजपूताना का भी एक भाग जीत लिया, और वहाँ महत्वपूर्ण पदों पर अपने वंश के राजकुमारों को नियुक्त कर दिया। उसका भतीजा भोज, जिसने सन्‌ 5000 से 1055 तक राज्य किया और जो सर्वतोमुखी प्रतिभा का शासक था, मध्युगीन सर्वश्रेष्ठ शासकों में गिना जाता था। भोज ने अपने समय के चौलुभ्य, चंदेल, कालचूरी और चालुक्य इत्यादि सभी शक्तिशाली राज्यों से युद्ध किया। बहुत बड़ी संख्या में विद्वान्‌ इसके दरबार में दयापूर्ण आश्रय पाकर रहते थे। वह स्वयं भी महान्‌ लेखक था, और इसने विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखी थीं, ऐसा माना जाता है। उसने अपने राज्य के विभिन्न भागों में बड़ी संख्या में मंदिर बनवाए।

भोज की मृत्यु के पश्चात्‌ चोलुक्य कर्ण और कर्णाटों ने मालव को जीत लिया, किंतु भोज के एक संबंधी उदयादित्य ने शत्रुओं को बुरी तरह पराजित करके अपना प्रभुत्व पुन: स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उदयादित्य ने मध्यप्रदेश के उदयपुर नामक स्थान में नीलकंठ शिव के विशाल मंदिर का निर्माण कराया था। उदयादित्य का पुत्र जगद्देव बहुत प्रतिष्ठित सम्राट् था। वह मृत्यु के बहुत काल बाद तक पश्चिमी भारत के लोगों में अपनी गौरवपूर्ण उपलब्धियों के लिय प्रसिद्ध रहा। मालव में परमार वंश के अंत अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1305 ई. में कर दिया गया।

परमार वंश की एक शाखा आबू पर्वत पर चंद्रावती को राजधानी बनाकर, 10वीं शताब्दी के अंत में 13वीं शताब्दी के अंत तक राज्य करती रही। इस वंश की दूसरी शाखा वगद (वर्तमान बाँसवाड़ा) और डूंगरपुर रियासतों में उट्ठतुक बाँसवाड़ा राज्य में वर्त्तमान अर्थुना की राजधानी पर 10वीं शताब्दी के मध्यकाल से 12वीं शताब्दी के मध्यकाल तक शासन करती रही। वंश की दो शाखाएँ और ज्ञात हैं। एक ने जालोर में, दूसरी ने बिनमाल में 10वीं शताब्दी के अंतिम भाग से 12वीं शताब्दी के अंतिम भाग तक राज्य किया।
[संपादित करें] राजा

    उपेन्द्र ( 800 – 818)
    वैरीसिंह प्रथम ( 818 – 843)
    सियक प्रथम ( 843 – 893)
    वाकपति ( 893 – 918)
    वैरीसिंह द्वितीय ( 918 – 948)
    सियक द्वितीय ( 948 – 974)
    वाकपतिराज ( 974 – 995)
    सिंधुराज ( 995 – 1010)
    भोज प्रथम ( 1010 – 1055), समरांगन सूत्रधार' के रचयिता
    जयसिंह प्रथम ( 1055 – 1060)
    उदयादित्य ( 1060 – 1087)
    लक्ष्मणदेव ( 1087 – 1097)
    नरवर्मन ( 1097 – 1134)
    यशोवर्मन ( 1134 – 1142)
    जयवर्मन प्रथम ( 1142 – 1160)
    विंध्यवर्मन ( 1160 – 1193)
    सुभातवर्मन ( 1193 – 1210)
    अर्जुनवर्मन I ( 1210 – 1218)
    देवपाल ( 1218 – 1239)
    जयतुगीदेव ( 1239 – 1256)
    जयवर्मन द्वितीय ( 1256 – 1269)
    जयसिंह द्वितीय ( 1269 – 1274)
    अर्जुनवर्मन द्वितीय ( 1274 – 1283)
    भोज द्वितीय ( 1283 – ?)
    महालकदेव ( ? – 1305)
    संजीव सिंह परमार (1305 - 1327)

5 comments:

  1. A news has been published in Maharashtra Times dated 26th July 2013 about get together of Dhar Pawar. The contact person is Sanjay Pawar. But the mobile no. given for contact is not correct. Do U know anything? If yes please call me on 9323294530 Pravin Kadam

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  2. ए। किंतु इस वंश के एक प्राचीन अभिलेख से यह पता चलता है कि परमार दक्षिण के राष्ट्रकूटों के उत्तराधिकारी थे। apne pas is lekh ki koi image he,kyoki isise sabit hoga ki Parmar rastrakut the ya fir or koi

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  3. ए। किंतु इस वंश के एक प्राचीन अभिलेख से यह पता चलता है कि परमार दक्षिण के राष्ट्रकूटों के उत्तराधिकारी थे।

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  4. परमार गोत्र राजपूतों में आता है। गुज्जर जाति में परमार नहीं , पम्मड़ होते हैं जिन्होंने हाल ही में परमार लिखना शुरू किया है।

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